
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय(ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा को दिए गए तीसरे सेवा विस्तार पर केन्द्र सरकार से पूछा है कि क्या, ईडी में मिश्रा के अलावा और कोई काबिल व्यक्ति है ही नहीं। यदि वे अब सेवानिवृत्त होते हैं तो फिर ईडी का क्या होगा। इस तरह से सुप्रीम कोर्ट से सवालों की झड़ी पर झड़ी लगा दी और सरकर द्वारा बचाव में दी गई दलीलों को निरस्त कर दिया।
याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 8 मई को होगी। गौरतलब है कि केन्द्र द्वारा ईडी के डायरेक्टर का कार्यकाल बढ़ाने के विरोध में याचिकाओं पर सुनवाई की जा रही है। डायरेक्टर मिश्रा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या वह इतने जरूरी हैं कि शीर्ष न्यायालय के मना करने के बावजूद उनका कार्यकाल बढ़ाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या कोई व्यक्ति इतना जरूरी हो सकता है।
दरअसल, शीर्ष अदालत ने 2021 के अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि सेवानिवृत्ति की उम्र के बाद प्रवर्तन निदेशक के पद पर रहने वाले अधिकारियों का कोई भी सेवा विस्तार कम अवधि का होना चाहिए। आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया था कि संजय मिश्रा को आगे कोई विस्तार नहीं दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मिश्रा का विस्तार प्रशासनिक कारणों से आवश्यक था और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) के भारत के मूल्यांकन के लिए महत्वपूर्ण था।
इस पर पीठ ने सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा, क्या ईडी में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है जो उनका काम कर सके? क्या एक व्यक्ति इतना जरूरी हो सकता है? आप के मुताबिक ईडी में कोई और सक्षम व्यक्ति है ही नहीं? 2023 के बाद इस पद का क्या होगा जब मिश्रा सेवानिवृत्त हो जाएंगे?’
इस पर तुषार मेहता ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग पर भारत के कानून की अगली सहकर्मी समीक्षा 2023 में होनी है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत की रेटिंग नीचे नहीं जाए, प्रवर्तन निदेशालय में नेतृत्व की निरंतरता महत्वपूर्ण है। मिश्रा लगातार कार्यबल से बात कर रहे हैं और इस काम के लिए वह सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। कोई भी बेहद जरूरी नहीं है, लेकिन ऐसे मामलों में निरंतरता जरूरी है।
तुषार मेहता ने एक बार फिर राजनेताओं की तरफ से एजेंसी के खिलाफ दायर याचिका पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं की पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ गंभीर मामले चल रहे हैं। ऐसे में इन लोगों के याचिका दाखिल करने पर मुझे आपत्ति है।
मेहता ने कहा कि इनमें से कुछ के पास बेहिसाब दौलत है और वे इसका ब्योरा नहीं देते। एक मामले में तो नोट गिनने वाली मशीनें लानी पड़ी थीं। मेहता ने पूछा कि क्या अदालत ऐसे लोगों के इशारे पर दाखिल याचिकाओं को सुनेगा जो एजेंसियों पर दबाव डालने की मंशा रखते हैं। हालांकि पीठ ने मेहता की दलीलें स्वीकार नहीं की। और मामले पर अगली सुनवाई 8 मई को होगी।
गौरतलब है कि मिश्रा को शुरुआत में ईडी निदेशक के रूप में दो साल के कार्यकाल के लिए नियुक्त किया गया था, जो नवंबर 2020 में समाप्त हो रहा था। बाद में उनका कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही, उन्हें एक साल का सेवा विस्तार दिया गया था, जिसे एक एनजीओ, कॉमन कॉज़ ने शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। सितंबर 2021 में एक फैसले में अदालत ने यह देखते हुए मिश्रा के सेवा विस्तार की अनुमति दे दी थी कि उनका कार्यकाल लगभग दो महीने में समाप्त हो रहा है।
हालाँकि, अदालती फैसले में स्पष्ट था कि मिश्रा को और कोई सेवा विस्तार नहीं दिया जाएगा। इसके बाद केंद्र सरकार ने स्थापना अधिनियम में संशोधन कर सीबीआई और ईडी प्रमुखों के कार्यकाल को उनके दो साल के कार्यकाल के अतिरिक्त तीन साल की अवधि के लिए एक-एक साल का विस्तार देने की अनुमति दे दी।
बाद में इन संशोधनों को कांग्रेस नेताओं रणदीप सिंह सुरजेवाला, जया ठाकुर, और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा सहित अन्य द्वारा दायर याचिकाओं के एक समूह में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई है। इसी संशोधन के तहत मिश्रा को नवंबर 2021 से नवंबर 2022 तक विस्तार मिला था। पिछले नवंबर में, उनका कार्यकाल एक अधिसूचना द्वारा नवंबर 2023 तक और बढ़ा दिया गया है।