मध्यप्रदेश
परीक्षित का जीवन स्वार्थ से परे परमार्थ का है- बाला व्यंकटेश।

परीक्षित का जीवन स्वार्थ से परे परमार्थ का है- बाला व्यंकटेश।
पूजापार्क की भागवत कथा का द्वितीय दिवस
सीधी 11 जनवरी
स्थानीय पूजापार्क सीधी में 10 जनवरी से चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के प्रबक्ता पं बाला व्यंकटेश जी महराज वृन्दावनोपासक का ब्यास पीठ पर हार्दिक अभिनन्दन बन्दन किया गया तथा आज के प्रमुख यजवान सुरेश शर्मा के द्वार व्यासपीठ पर प्रतिष्ठित भागवत भगवान की पूजा अर्चना आचार्यो के मंत्रोच्चारण के साथ हुई। कथा बन्दना के पश्चात श्री कृष्ण रसामृत समिति पूजा पार्क के संरक्षक सुरेन्द्र सिंह बोरा, अध्यक्ष कुमुदिनी सिंह, सचिव डाॅ श्रीनिवास शुक्ल सरस, संयोजक अंजनी सिंह सौरभ तथा समिति के पदाधिकारी ए.पी. सिंह बघेल, बी.बी. सिंह गहरबार, भास्कर सिंह पी.टी.आई, लालमणि सिंह बरिष्ठ अधिवक्ता, राजकुमार सिंह चौहान, अशोक सिंह बघेल, अशोक सोनी आदि ने माल्यार्पण करके कथा व्यास बालाव्यंकटेश महराजगंज का अभिनन्दन बन्दन किया।
कथा के विवध प्रसंगों को उद्घाटित करते हुए कथा व्यास महराज जी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण पावरहाउस है और उनके भक्त गुरु ट्रांसफार्मा हैं।यदि पावरहाउस सीधे बल्ब में ऊर्जा यानी प्रकाश का संचार करेंगे तो बल्ब फ्यूज हो जायेंगे लेकिन यदि वही प्रकाश बल्बो में ट्रांसफार्मर के माध्यम से संचरित होगा तो बल्ब अपनी सामर्थ्य के अनुसार प्रकाश देने में समर्थ होंगे।कहने का भाव यह कि ट्रांसफार्मर रूपी गुरु बल्ब रूपी भक्तों को ज्ञान रूपी प्रकाश से समर्थ और सम्पुष्ट बना देता है। फलतः प्रभु से मिलाने और वहाॅ तक पहुॅचाने का कार्य गुरु ही करता है। गुरु महिमा को और अधिक विस्तार देते हुए व्यास जी ने बताया कि शुकदेव और परीक्षित के संवाद का प्रयोजन श्री कृष्ण को जानने का था। क्योकि जब तक भगवत प्रेम को नही समझेंगे तब तक जन कल्याण संभव नही। अतएव आयोजन का एक सुनियोजित प्रायोजन होता है। बहुत ही व्यवहारिक सूत्र देते हुए व्यास जी ने कहा कि गुरु की चाह में ही शिष्य की राह होती है। द्रोणाचार्य का नाम आरेखित करते हुए महराज जी ने बताया कि अर्जुन की राह, चाह के कारण ही प्रशस्त हुआ है। ब्यास जी ने आगे बताया कि जहाॅ किसी भी क्रिया में पुरस्कार की चाहत न हो वहीं भगवत प्रेम होता है। गुरु महिमा और गुरुता की ओर संकेत करते हुए महराज जी ने बताया कि आस्था और विश्वास के बिना ज्ञान पाना संभव नही है। अतएव यदि आप गुरु कृपा चाहते हैं तो आस्था और विश्वास का भाव हृदय में पालकरके गुरु के बताये मार्ग में चलने का अभ्यास करें। इसलिए भी कि सोन का जल प्रवहित होकर सब समुन्दर् तक न पहुॅचकर इधर उधर बिथर जाता है लेकिन जो जल मर्यादा की परिधि में प्रवहित होता है वही सागर तक पहुॅच पाता है। संकेत और प्रतीक के माध्यम से कई प्रसंगो को बोधगम्य शैली में व्यास जी ने भक्तों को समझाया।परीक्षित का जीवन स्वार्थ से परे परमार्थ का है इसीलिए शुकदेव परीक्षित का संवाद जो मानव मात्र के कल्याण के लिए है वह ज्ञान यज्ञ है। कथा के प्रसंग में ज्ञान यज्ञ और ज्ञान सत्र की गहन व्याख्या करते हुए व्यास जी ने भक्तों को दृष्टान्तों तथा उद्धरणों से मंत्र मुग्ध कर दिया। दृष्टान्तों और उद्धरणों के लिए सिद्ध हस्त महराज जी ने आगे बताया कि जब सन्त चिन्तन करते हैं तब जनकल्याण हो जाता है और हम संसारियों की चिन्ता भगवत अनुराग से वंचित कर देती है। यही कारण है कि नारद की चिन्ता मृत्यु लोक के प्राणियों की दशा देखने और उनके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने की थी। इसीलिए नारद जी को भ्रमण करते हुए भक्ति महरानी की तपस्थली वृन्दावन के तपो भूमि में जाना पड़ा सार्वजनिक कथा में उपस्थित होकर पूजापार्क में कथा श्रवण की अपील आयोजकों द्वारा की गई है।