मध्यप्रदेश

जिले में 15 से आरंभ होगा फाग महोत्सव का कार्यक्रम,33 ग्रामों में आयोजित होगा फाग महोत्सव एवं होली मिलन समारोह।

जिले में 15 से आरंभ होगा फाग महोत्सव का कार्यक्रम,33 ग्रामों में आयोजित होगा फाग महोत्सव एवं होली मिलन समारोह।
9 प्रमुख स्थानों पर होगा फाग महोत्सव एवं होली मिलन समारोह
सीधी
अंगराग एवं उत्थान सामाजिक सामाजिक सांस्कृतिक साहित्यिक समिति सीधी के तत्वावधान में आयोजित 31 दिवसीय फाग महोत्सव एवं होली मिलन समारोह की शुरुआत दिनांक 15 फरवरी 2023 को चुरहट से होनी है। यह महोत्सव चुरहट सीधी सिंगरौली और रीवा के कुल 33 ग्रामों में आयोजित होगा जिसमें से 9 प्रमुख स्थान मनकीसर, खड्डी, बाघड़, रामपुर, घुंघुटा, भरतपुर, बघमरिया, लहिया, मोहनिया, चुरहट आदि हैं। यह उत्सव एक सांस्कृतिक यात्रा की तरह चलेगा। यात्रा के दौरान भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से विविध फाग गीतों का संकलन किया जाएगा एवं उसे बघेली लोक संपदा पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जावेगा। साथ ही साथ बघेलखंड क्षेत्र के अलग-अलग ग्रामों में निवासरत फाग कलाकारों की सूची भी तैयार की जावेगी। 33 दिन तक चलने वाले फाग महोत्सव में तकरीबन 60 फाग दलों के 900 फाग कलाकार शामिल होंगे।

महोत्सव में बघेलखंड में गाए जाने वाले विविध फाग प्रकारों उचटा, लेजम, बैसवारा, बुंदेली, चौताला, डग्गा, दहंका, राई, तिंताला, धूल उडऩ, बारहमासा, नारदी आदि की प्रस्तुतियां होगी। यह फाग महोत्सव 9 प्रमुख स्थानों के आलावा सीधी जिला के 33 अन्य ग्राम परसिली, बजरंगगढ़, रतवार, बड़ेसर, शंकरपुर, पैपखरा, खड्डी कला, मगरोहर, चंदरेह, बाघड़, भरतपुर, घुंघुटा, अमिलई, हत्था, लेहचुआ, आमडांड़, कंधवार, पडख़ुरी 786, मोहनिया, बडख़रा, सांड़ा, मवई, बघऊं, धुम्मा, लकोड़ा, बरिगवां, लहिया, उकरहा, बरिगवां, पटपरा, बघमरिया, टमसार, हरिहरपुर, हस्तिनापुर, बरबंधा एवं रीवा के 5 ग्रामों एवं सिंगरौली के 7 ग्रामों में भी फाग उत्सव एवं फाग गीत संकलन का  कार्य होगा। हमारे लोकगीतों की बुनावट साझी संस्कृति और साझे राग की है। वैसे हमारे लोक में पूरे वर्ष लोकगीत गाए जाते हैं एवं साथ ही विंध्य क्षेत्र में निवासरत विविध जातियों के जातीय गीत भी हैं। इधर बसंत के आगमन के साथ ही लोक की सबसे उर्जावान गायकी फाग गायन की शुरुआत हो जाती है। फाग अनहद नाद है। जब फाग गायन होता है तो पूरी ऋतु यह गीत गाती है। हमे लगता है हमारे लोक गीतों को अब मोबाइल या अन्य आभासी संसाधनों पर ज्यादा सुना जा रहा है।

दर्शक या श्रोता कलाग्रामों या कलाकारों तक जाने की जहमत नहीं उठा रहे ऐसे में हम अपनी लोक संस्कृति, कलाओं को जीवित रहने या पल्लवित पुष्पित होते रहने की अपेक्षा बिलकुल न करें। हमारी लोक कलाएं हमारी विविध जातिगत जीवन शैली का अभिन्न अंग हैं। इन तमाम आभासी संसाधनों ने इसकी जीवंतता के लिए खतरे तो निश्चित तौर पर खड़े कर दिए हैं लेकिन हम अपनी कलाओं के प्रति और उनसे जुड़ी जीवन शैलियों में सशरीर आस्था रखते हैं तो यह कलारुप आगे आने वाले दिनों तक बचे रहेंगे। यह गीत कवियों एवं गीतकारों के नही रहे हैं यह आम जनों के बीच उपजे और गाए जाते रहे हैं । इन गीत जीवन शैली के अभिन्न हिस्से हैं इसलिए हमारा पूरा लोक समाज सुरीला रहा है। गांधी जी कहते थे समाज सुरीला होगा तो समाज में तनाव कम होगा।

विस्मिल्लाह खान साहब कहते थे जो समाज सुरीला होगा वह आक्रामक नही होगा। हम सब को जिम्मेदारी है की अपने गांव कस्बों में जाएं इन कलाकारों का उत्साहवर्धन करें और इसे अभ्यास में बचाए रखें। लोक कलाओं के इतनी लंबी यात्रा के पीछे उनका सामूहिक अभ्यास रहा है। बघेलखंड क्षेत्र की फाग गायन परंपरा बाकी के क्षेत्रों की अपेक्षा काफी समृद्ध और वैविध्यपूर्ण है। यह परंपरा आगे आने वाली पीढिय़ों तक पहुंचे और वर्तमान इनमें अभ्यस्त रहे इसी उद्देश्य के साथ संभाग स्तर पर फाग महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें सीधी रीवा सिंगरौली आदि जिले के कलाकार अपने अपने गांव क्षेत्र में फाग का गायन करेंगे और नई पीढ़ी को भी इसमें संपृक्त करेंगे।

[URIS id=12776]

Related Articles

Back to top button