मध्यप्रदेश

जानिए क्यों चांद के दीदार के बाद ही मनाई जाती है ईद…

जानिए क्यों चांद के दीदार के बाद ही मनाई जाती है ईद…

सीधी सिंहावल। आज पूरे देश में ईद-उल-फितर का त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जा रहा है। रमजान का पाक महीने के खत्म होने पर ईद मनाई जाती है। इसे मीठी ईद भी कहा जाता है, जिसमें खासतौर पर सेवईयां और कई मिठाइयां बनाई जाती और बांटी जाती हैं। ये अमन और शांति का प्रतीक है और पूरी दुनिया में इसे मनाया जाता है। हिजरी कैलेंडर (उर्दू कैलेंडर) के अनुसार ये त्यौहार दसवें महीने (शव्वाल), शव्वाल उल-मुकरर्म की पहली तारीख को मनाया जाता है। इस साल ईद 22 अप्रैल को पूरे देश में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है। देशभर में इसकी रौनक है। न केवल मुसलमान भाई-बहन में, बल्कि देश के सभी लोग अपने मुसलमान दोस्तों के घर ईद की खुशी में शरीक होते हैं।

क्या है ईद से चांद का नाता?

ईद-उल-फितर की जब बात आती है तो सबसे पहले ईद के चांद का जिक्र होता है। रमजान के 30 रोजे रखे जाते हैं, आखिरी रोजे के दिन शाम के वक्त ईद का चांद दिखाई देता और इस चांद के दीदार के बाद अगले दिन ईद होती है। चांद देखकर सभी का मन खुशी से भर जाता है। ईद का ये चांद साल में सिर्फ दो बार दिखाई देता है। एक ईद-उल-फितर पर और दूसरा ईद-उल-जुहा पर जिसे हम बकरीद भी कहते हैं। कहा जाता है कि ईद के चांद को देख कर जो भी मुराद मांगी जाए वो पूरी होती है। ईद का चांद बेहद खूबसूरत होता है और इसकी मिसालें हर जगह दी जाती हैं। जब चांद दिखता है तभी रमजान का महीना खत्म होता है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि चांद देखकर ही ईद क्यों मनाई जाती है? दरअसल उर्दू कैलेंडर हिजरी संवत चांद पर आधारित है। हिजरी संवत का कोई भी महीना नया चांद देखकर ही शुरू होता है। इसी तरह रमजान का नौंवा महीना खत्म होने पर शव्वाल के पहले दिन के चांद को देखकर ही ईद मनाई जाती है।

क्यों मनाई जाती है ईद?

कुरान के मुताबिक इसी दिन पैगम्बर हजरद मुहम्मद ने बद्र के साथ लड़ाई की और उसमें जीत हासिल की, इसी खुशी में पहली बार 624 ईस्वी में ईद मनाई गई। तब से हर साल प्रेम और सद्भावना के साथ सभी मुस्लिम ईद मनाते हैं।

कुरान की कहानी के अनुसार अरब में पैगम्बर हजरद मुहम्मद ने देखा कि हर एक व्यक्ति एक दूसरे से अलग हो रहा है और दो भागों में बंट गया है। तब सबको एकजुट करने के लिए एक नियम बनाया जिसे सब मानेंगे और उसे रोजे का नाम दिया। उन्होंने कहा कि पूरे दिन हम न कुछ खाएंगे न पिएंगे ताकि हमें भी ये पता हो कि एक भूखे और गरीब व्यक्ति का जीवन कैसा होता है। इससे हममें त्याग और बलिदान की भावना आएगी, और दुख भोगने की शक्ति मिलेगी। उन्होंने जकात-उल-फितर का भी रास्ता बताया जिसे जकात करना या दान करना भी कहा जाता है। वही सिहावल चौकी प्रभारी फूलचंद बागरी के नेतृत्व में सिहावल क्षेत्र में ईद की नवाज अदा हुई और भाई चारे के साथ ईद का पर्व मनाया जा रहा है। किसी प्रकार की अव्यवस्था ना हो पुलिस अपनी नजर बनाए रखी है।

[URIS id=12776]

Related Articles

Back to top button