मध्यप्रदेश

किससे कहें दिल की बात,न विशाखा कमेटियों का पता,न कोई सुनने वाला।

किससे कहें दिल की बात,न विशाखा कमेटियों का पता,न कोई सुनने वाला।

कार्यालयों मे महिला उत्पीड़न के मामलों का मानिटरिंग तंत्र निष्क्रिय।
संबंधित संस्थान प्रबंधन कागजों मे कमेटियां बनाकर कर रहे इतिश्री
जिम्मेदार कर रहे सिर्फ रिपोर्ट लेने का काम।

पोल खोल सीधी:- सरकारी और गैर सरकारी कार्यस्थलों पर महिला कार्मियों का उत्पीड़न रोकने के लिए हर कार्यालय मे जरुरी की गई विशाखा कमेटियां कागजी ही बनकर रह गई हैं।अपुष्ट सूत्र बताते हैं कि कमर्जी थाना,चुरहट थाना व शासकीय स्कूल के शिक्षक पर छात्राओं को पोर्न वीडियो दिखाने का भी मामला सामने आ चुका है।महिला उत्पीड़न की शिकायत करने के बाद पड़ताल में सामने आया कि इन कमेटियों की मानिटरिंग का पूरा तंत्र निष्क्रिय है।

अभी भी कुछ बड़े संगठनों को छोड़कर अधिकांश संगठन प्रावधान के साथ जुड़े हुए नहीं है।यहां तक कि वो कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के लिए बनाए गए कानून क्या है और इसके लिए क्या अर्थदंड है और क्या इसका निवारक तंत्र है,इन सब नियमों और कानूनों को सार्वजनिक करने वाले नियम भी प्रदर्शित नहीं है।अधिकांश जगहो पर आंतरिक शिकायत समितियों का भी अता-पता नहीं है।

कार्यालयो मे विशाखा कमेटियों की सूचना तक चस्पा नहीं:-
नियोक्ता को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न मामलों से निपटने के लिए अपनी संस्था या कपंनी मे आंतरिक शिकायत समिति गठित करना चाहिए।समिति की अध्यक्षता संस्था या कंपनी की वरिष्ठ महिला अधिकारी कर्मचारी की ओर से की जानी चाहिए।इस समिति से संबंधित जानकारी कार्यस्थल पर किसी ऐसी जगह चस्पा की जानी चाहिए जहां कर्मचारी उसे आसीनी से देख सकें।

सब जगह बनी या नहीं विभाग को भी नहीं पता:-
इन कमेटियों की नियमित रिपोर्टिंग महिला एवं बाल विकास विभाग को दी जाती है विभाग का दावा है कि सूचना उनके पास आती है हालांकि सभी जगह यह कमेटियां बनी है या नहीं वहां सूचना चस्पा है या नहीं इसकी जानकारी विभाग को नहीं होती औचक निरीक्षण पर इसकी पड़ताल भी अभी तक सामने नहीं आई है।

इस तरह अस्तित्व मे आया नियम :-
अगस्त 1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने देश में कार्यस्थल पर लैंगिक एवं यौन उत्पीड़न रोकने के लिए विशाखा दिशा-निर्देश बनाए थे इसके बाद देश में कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण प्रतिषेध एवं प्रतितोषण) कानून 2013 मे बनाया गया।दिसंबर 2013 में इसके नियम भी जारी कर दिए गए।जिस संस्थाओं में 10 से अधिक लोग काम करते हैं उन पर यह अधिनियम लागू होता है अधिनियम 9 दिसंबर 2013 को प्रभाव में आया था इस अधिनियम में विशाखा केस में दिए गए करीब-करीब सभी दिशा निर्देश शामिल किए गए हैं।

मुख्य प्रावधान :-
:- यह जरूरी नहीं है कि जिस कार्य स्थल पर महिला का उत्पीड़न हुआ है वह वहां नौकरी करती हो।
:- शिकायत करते समय घटना को घटे तीन महीने से ज्यादा समय नहीं बीता हो,और यदि एक से अधिक घटनाएं हुई है तो आखरी घटना की तारीख से तीन महीने का समय पीड़ित के पास है।
:- आंतरिक शिकायत समिति को यह लगता हैं कि इससे पहले पीड़ित शिकायत करने मे असमर्थ थी तो यह सीमा बढ़ाई जा सकती हैं, लेकिन इसकी अवधि और तीन महीनों से ज्यादा नहीं बढ़ाई जा सकती।
:- शिकायत लिखित रुप मे की जानी चाहिए।
:- यदि किसी कारणवश पीड़ित लिखित रुप से शिकायत नहीं कर पाती है तो समिति के सदस्यों की जिम्मेदारी है कि वे लिखित शिकायत देने मे पीड़ित की मदद करें।

यह प्रावधान भी :-
:- यदि महिला चाहती हैं तो मामले को समाधान की प्रक्रिया से भी समझाया जा सकता है।
:- इस प्रक्रिया मे दोनो पक्ष समझौते पर आने की कोशिश करते हैं, लेकिन ऐसे किसी भी समझौते मे पैसे भुगतान द्वारा समझौता नहीं किया जा सकता।
:- यदि महिला समाधान नहीं चाहती हो तो जांच की प्रक्रिया शुरु होगी,जिसे आंतरिक शिकायत समिति को 90 दिन मे पूरा करना होगा।

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