मध्यप्रदेश

सुपेला में श्रीमद् भागवत कथा का विश्राम हुआ,कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र सुनकर भावुक हुए श्रोता।

सुपेला में श्रीमद् भागवत कथा का विश्राम हुआ,कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र सुनकर भावुक हुए श्रोता।

सीधी जिले के सुपेला ग्राम में चल रही श्रीमदभागवत कथा का रविवार को विश्राम हो गया। इस दिन श्रीमद् भागवत का रसपान पाने के लिए भक्तों का सैलाब कथा स्थल पर उमड़ पड़ा। प्रसिद्ध कथावाचक देवी चित्र लेखा जी ने श्रीमद् भागवत कथा का समापन करते हुए कई कथाओं का भक्तों को श्रवण कराया जिसमें प्रभु कृष्ण के 16 हजार 108 विवाह के प्रसंग के साथ, सुदामा प्रसंग की कथा सुनाई। कथा को सुनकर सभी भक्त भाव विभोर हो गए। उन्होंने आगे कहा कि सच्चा वैष्णव दुख हो या सुख दोनों परिस्थिति में समान रहता है। सुख में न वो फूलता है और दुख में वो न डूबता है।


सुख में मनुष्य सरकती रेती जैसा बन जाता है, समय कब बीत गया पता ही न चला और दुख में मनुष्य के हृदय में कांटा जैसा चुभता है, लेकिन दोनों ही स्थिति में वैष्णव को स्थिर रहना चाहिए।

जीवन में कई बार बहुत सारी ऐसी बातें होती हैं जो हमे अच्छी नहीं लगती हैं लेकिन तब भी ये विश्वास रखना चाहिए कि भगवान जो करे सो भली करे। जिस प्रकार माँ बाप अपने सन्तान की रक्षा करते हैं उसी प्रकार अपने भक्तों की रक्षा भी भगवान करते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि भौमासुर नामक दैत्य ने एक लाख कन्याओं के साथ विवाह करने के उद्देश्य से उन्हें बंदी बना कर रख रहा था ।
तब उन कन्याओं के जीवन की रक्षा के लिए भगवान् ने उस दैत्य का संहार किया और उन कन्याओं को कैद से बचाया मगर जब कन्याओं ने कहा कि इतने वक़्त परिवार से दूर रहने के बाद उन्हें कौन स्वीकार करेगा। तो उन्हें इस लांछन से बचाने के लिए भगवान् ने उन 16 हजार 101 कन्याओं से विवाह किया।

देवी चित्रलेखा जी ने कथा लीला पर प्रकाश डालते हुए बताया कि श्री परीक्षित जी ने श्री सुखदेव जी से भगवान् के भक्त और परम मित्र की कथा सुनाने का आग्रह किया और सुखदेव जी ने उन्हें श्री सुदामा जी महाराज की कथा सुनाई बताया कि सुदामा नाम के एक गरीब ब्राह्मण जिनकी प्रारंभिक शिक्षा भगवान् कृष्ण के साथ एक गुरुकुल में हुई थी।
सुदामा जी एक विरक्त ब्राह्मण थे। अपनी हर स्थिति परिस्थिति के लिए भगवान् को ख़ुशी ख़ुशी धन्यवाद देने वाले।

आज अपनी परिस्थितियों में अपनी पत्नी के कहने पर भगवान् से मिलने गए । और जब घर वापस आये तो भगवान् ने कृपा कर के उनकी झोपड़ी की जगह आलिशान महल बना दिया पर वो आदर्श सुदामा जी उस महल के त्यागकर उसके नजदीक एक कुटिया बना कर रहे और जीवन यापन किया।
इसके पश्चात कथा के मुख्य प्रसंगों को श्रवण करा के कथा सार सुनाया और फिर शाप की अवधि के अनुसार सुखदेव जी ने वहां से प्रस्थान किया परीक्षित जी ने खुद को भगवान् में लीन कर लिया और तक्षक नाग ने उन्हें डंसा ।

कथा समापन के दौरान कथा व्यास ने भक्तों को भागवत को अपने जीवन में उतारने की बात कही जिससे सभी लोग धर्म की ओर अग्रसर हो। कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने मित्रता की मिसाल पेश की और समाज में समानता का संदेश दिया। साथ ही भक्तो को बताया कि श्रीमद् भागवत कथा का सात दिनों तक श्रवण करने से जीव का उद्धार हो जाता है तो वहीं इसे कराने वाले भी पुण्य के भागी होते है।

कथा आयोजक क्षेत्रीय विधायक एवं पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल ने बताया कि कथा के समापन का भंडारा कल सोमवार को आयोजित किया है।
सोमवार को पूर्वान्ह 10:30 बजे परमहंस आश्रम के श्री तुलसीदास जी महाराज पधारेंगे। उसके बाद महाप्रसाद का वितरण होगा।
श्रीमद् भागवत कथा पूर्व विधायक श्रीमती शीला त्यागी,अध्यक्ष,जनपद पंचायत मझौली श्रीमती सुनयना सिंह,
संचालक, स्टार ग्रुप रमेश सिंह, मिर्जापुर उत्तर प्रदेश से विक्रम जैन अनुराग त्रिपाठी, पत्रकार बंधु,सामाजिक कार्यकर्ता जनप्रतिनिधि गण एवं बड़ी संख्या में श्रद्धालु महानुभावों ने भाग लिया।
महाआरती के साथ कथा का विश्राम हुआ।

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