उपखण्ड का दफ्तर स्टेनो एवं के खण्ड लेखक सहारे चल रहा

दो साल से लिपिकों की नही हुई पदस्थापना,कास्तकार भी परेशान
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जिला मुख्यालय बैढऩ के उपखण्ड कार्यालय सिंगरौली के दफ्तर में एक भी स्थायी लिपिक नहीं हैं। यहां का कामकाज खण्ड लेखक एवं स्टेनो व भृत्य संभाले हुए हैं। दफ्तर में लिपिकों के न होने से जहां कार्यालयीन कामकाज अस्त-व्यस्त है। वहीं इसका भरपूर फायदा खण्ड लेखक एवं स्टेनो उठा रहे हैं। हालांकि एसडीएम के कार्य पद्धति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है, किन्तु एसडीएम को गुमराह करने में दोनों अमला काफी महारथ हासिल कर लिया है।
दरअसल जानकारी के मुताबिक उपखण्ड कार्यालय सिंगरौली के दफ्तर में तकरीबन दो साल से एक भी लिपिक पदस्थ नहीं हैं। रामलाल लिपिक पदस्थ थे इन्हीें आफीस कानूनगो में तैनात कर दिया गया। तब से अब तक इस दफ्तर में लिपिकों की पदस्थापना नहीं की गयी है। जबकि सूत्र बताते हैं कि कम से कम तीन लिपिक होने चाहिए। लिपिक विहीन उपखण्ड कार्यालय ने इन दिनों सर्वे-सर्वा स्टेनो एवं एक खण्ड लेखक है। जबकि राजस्व संबंधित फैसले भी संभवत: इसी के द्वारा लिखा पढ़ा जा रहा है। सूत्रों का यह भी कहना है कि उपखण्ड कार्यालय का दफ्तर व्यवस्थाओं के बीच चल रहा है। उपखण्ड अधिकारी को गुमराह कर दोनों दफ्तर का अमला अपना चला रहे हैं।
आरोप है कि जैसा खण्ड लेखक एवं स्टेनो चाहते हैं उसी तरह से राजस्व सहित अन्य मामलों का निपटारा होता है। आरोप यह भी है कि उक्त दफ्तर में कर्मचारियों की खुराकी भी इधर-उधर से बढ़ गयी है। यहां तक की भृत्य भी दिनभर इसी मामले में व्यस्त रहते हैं। दफ्तर में आने वाले कई कास्तकार काफी परेशान दिखते हैं। इसकी शिकायतें भी पूर्व में कलेक्टर तक की जा चुकी है। फिर भी खुराकी वसूली पर न तो अंकुश लग पाया है और न ही लिपिकों की पदस्थापना की गयी। बहरहाल जिला मुख्यालय बैढऩ के उपखण्ड कार्यालय करीब दो साल से लिपिक विहीन होने से जहां कार्यालयीन कामकाज अस्त-व्यस्त एवं अव्यवस्थित है।
वहीं दूसरी ओर खण्ड लेखक व स्टेनों की कार्यप्रणाली पर भी तरह-तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं। यहां बताते चलें कि उपखण्ड अधिकारी का कामकाज किसी से छुपा नहीं है। उन पर साफ छवि होने के कारण उन पर ऊंगली भी नहीं उठायी जा सकती। यह जगजाहिर है। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल 2018-19 में ऋषि पवार की पदस्थापना सिंगरौली में जब से हुई थी तभी से यहां पदस्थ हैं। उनके कामकाज पर कोई ऊंगली नहीं उठाता और एक अच्छे अधिकारी के रूप में उनकी गणना होती है, किन्तु उन्हीं के मातहत गुमराह कर अपने मन मुताबिक कामकाज करा ले रहे हैं।
खण्ड लेखक का नकल में अकल कम…बाकी में ज्यादा
खण्ड लेखक का काम केवल नकल बनाने का दायित्व है। लेकिन इन दिनों खण्ड लेखक भी दफ्तर में सर्वे सर्वा दिख रहा है। जबकि लिपिक अधिकारी के आदेशानुसार किसी मामले के फैसले को बोलता है और स्टेनो टाइपराइटर उसे टाइप करता है। यहां सब कुछ उलट दिख रहा है। लिपिक न होने का दोनों भरपूर फायदा उठा रहे हैं। इस बात की चर्चा इन दिनों दफ्तर के अंदर एवं बाहर जोर-शोर से है।